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केले की खेती कैसे करें | केले की फसल में नेचरडीप के लाभ

केले की खेती (Banana Cultivation) किसानों के लिए अच्छी आमदानी का जरिया हो सकता है. ऐसा कहा जाता है कि केले की खेती करीब 4 हजार साल पहले मलेशिया में शुरू हुई थी. भारत के कई प्रांतों में केले की खेती की जाती है. महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार और असम में खेले की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. वहीं उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्र में केले की खेती जा रही है. तो आइये जानते हैं केले की खेती कैसे की जाए.

केले की खेती के लिए मिट्टी (Soil for Banana Cultivation):

केले की खेती के लिए गहरी गाद वाली चिकनी, दोमट और उच्च दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है. वहीं इसकी खेती विभिन्न किस्मों उच्च पोषक तत्वों वाली मिट्टी में की जा सकती है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि केले की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 होना चाहिए. जिस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस  और पोटाश जैसे पोषक तत्वों की अच्छी मात्रा हो उसमें केले की खेती अच्छी होती है. केले की खेती करने वाले किसानों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इसकी खेती कैल्शियम युक्त रेतीली मिट्टी में नहीं करना चाहिए.

केले की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Banana Cultivation):

सबसे पहले गर्मी में एक गहरी जुताई करें. खेत को कुछ दिनों के लिए अच्छी धूप लगने दे उसके बाद उसके बाद खेत की 3 से 4 जुताई कल्टीवेटर से करना चाहिए. खेत की अंतिम जुताई के समय गोबर खाद या वर्मी कम्पोट डालना चाहिए. इसके बाद खेत को ब्लेड हैरो या लेजर लेवलर की मदद से समतल कर लेना चाहिए.

केले के पौधों की रोपाई (Transplanting of Banana Plants):

केले की पौधों की रोपाई का सही मध्य फरवरी से मार्च महीने का पहला सप्ताह उचित होता है. पौधों की रोपाई के लिए 45 से 60 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा करें. इसके बाद कुछ समय के लिए गड्डों को धूप में खुला छोड़ दें. जिससे भूमि में पाए जाने वाले कीट मर जाएंगे. अब गड्डे में पौधों के साथ गोबर खाद, नीम केक और कार्बोफ्युरॉन का मसाला डालें. गड्डों में मिट्टी अच्छी तरह से दबा दें. इस दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखें की पौधें की रोपाई अधिक गहराई में न करें.

banana cultivation

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केले की खेती के लिए बीज की मात्रा (Quantity of seed for Banana Cultivation):

यदि पौधों के बीच 1.8×1.5 मीटर दूरी रखी जाए तो एक एकड़ में करीब 1452 पौधे लगते हैं. वहीं यदि पौधों के बीच 2 मीटर x 2.5 मीटर की दूरी रखी जाए तो एक एकड़ में करीब 800 पौधे लगेंगे.

केले की खेती के लिए बीज उपचार (Seed treatment for Banana Cultivation):

खेत में रोपाई से पहले केले के पौधों की जड़ों को धोकर क्लोरपाइरीफॉस 20 ई. सी. 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर उसमें डुबोएं. वहीं गांठों को निमोटोड से बचाने के लिए कार्बोफ्युरॉन 3 प्रतिशत सी जी  50 ग्राम से प्रति पौधों की जड़ को उपचारित करना चाहिए.

केले की खेती के लिए सिंचाई (Irrigation for Banana Farming):

केले की ज्यादा पैदावार के लिए 70-75 सिंचाइयों की जरुरत पड़ती है. ठंड के दिनों में 7-8 दिनों और गर्मियों में 4-5 दिनों के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए. बता दें कि केले की फसल से अच्छी पैदावार के लिए नियमित सिंचाई बेहद आवश्यक होती है.

केले की खेती के लिए कटाई (Harvesting for Banana Cultivation):

पौधे रोपने के 11 से 12 महीनों बाद ही केले की तुड़ाई शुरू हो जाती है. इस दौरान इस बात का विशेष ध्यान दें कि लोकल मार्केट के लिए केले के पूरी तरह पकने के बाद ही तुड़ाई करना चाहिए.वहीं कहीं दूर मंडी ले जाने के लिए केले की तुड़ाई उस समय करें जब केला 75-80 प्रतिशत पका हो.

केले की फसल में नेचरडीप के लाभ

  1. सफेद जड़ों का विकासः नेचर डीप के घटक मायकोरायझा सफेद जड़ों का विकास करता है जिससे केले की फसल में अन्न द्रव्य सोखने के लिए बड़ी मात्रा में सफेद जड़े तैयार हो जाती है।
  2. जडों की कक्षा बढ़ जाती है: नेचर डीप के कारण जड़ों की कक्षा बढ़ जाती है और हर तरफ फैली जड़े जमीन में काफी नीचे से भी पानी और अन्न द्रव्य ले सकते है।
  3. उर्वरक और पानी की उपलब्धताः जड़ों का विकास न होने के कारण कई बार केले की फसल तक दिया गया रासायनिक या जैविक ऊर्वरक तथा पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुँचता है नेचर डीप के कारण यह मुमकीन होता है. नेचर डीप के कारण बढी और दूर तक फैली जड़ें पौधे तक दिया गया रासायनिक या जैविक उर्वरक तथा पानी पहुँचाने का काम करती है।
  4. केले की वृद्धिः नेचर डीप के इस्तेमाल से केले के फसल का उचित विकास होता है और पत्तों का आकार बड़ा होकर पत्ता हरा होने में मदद मिलती है।
  5. मजबूत फेंदा: केले में बंच तयार होने और बंच का वजन तौलने के लिए केले का फेंदा बड़ा होने बहुत आवश्यक होता है, नेचर डीप के कारण यह मुमकीन होता है, शुरुआत के समय में किया गया पहला सर्कलिंग केले की फसल में फेंदा सक्षम तथा बड़ा करने में पेड को मदद करता है।
  6. केले के बंच का निर्माण: केले के फसल में बंच का निर्माण तथा फूल सही समय पर निकल आना बहुत आवश्यक होता है, अगर ऐसा नहीं हुआ तो अवस्था आगे-पिछे हो कर केले निकालना मुश्किल होता है. केले में फूल तैयार होना पानी और अन्न द्रव्य इनके संतुलित इस्तेमाल से सही समय पर और एक साथ पाया जा सकता है. नेचर डीप के कारण यह मुमकीन है कारण नेचर डीप द्वारा निर्मित जड़ें पौधे की जड़ों के मुकाबले 50 गुना अधिक काम करती है।
  7. जड़ें काली हो जानाः जब जमीन का तापमान 10 डिग्री से नीचे चला जाता है, खास कर ठंड के मौसम में तब केले की सफेद जड़ें काली पड़ जाती है और पौधे को पानी तथा अन्नद्रव्यों की आपूर्ती कम होने लगती है. नेचरडीप के कारण जड़ें काली नहीं होती और पानी तथा उर्वरक केले तक पहुंचाए जाते हैं।
  8. केले का आकार, वजन तथा गोलाई: बंच निर्माण के बाद केले में केले का आकार एवं गोलाई तैयार होना आरंभ होता है. इस दौरान पालाश नामक घटक केले के लिए आवश्यक होता है, नेयर डीप जमीन में उपलब्ध सभी घटक जैसे की नत्र, स्फुरद, पालाश, कल्शिअम, बोरॉन इ. केले तक पहुँचाता है और इसके कारण केले को सही वजन एवं गोलाई प्राप्त हो जाती है।
  9. जैविक उत्पादः नेचर डीप एक जैविक उत्पाद है, नेचर डीप जमीन में ग्लोमालिन मान का एक घटक तैयार करता है जिससे जमीन में कार्बन बढ़ जाता है और जमीन उपजाऊ बन जाती है।
  10. नेचरडीप के इस्तेमाल करने से केले का उत्पादन 20 से 30% तक बढ़ जाता है।

नेचर डीप क्या है?

नेचर डीप एक जैविक उत्पाद है तथा इसमें मायकोरायझा नामक फफूंद है, यह फफूंद आपके केले के पौधों की जड़ों पर पनपती है और जडों की कक्षा बढ़ जाती है. इससे केले का पौधा अधिक से अधिक अन्न द्रव्य ले सकता है और केले का उत्पादन बढ जाता है। नेचर डीप का इस्तेमाल केले की फसल में नेचर डीप का 2 बार इस्तेमाल करें।

केले की फसल में नेचर डीप की मात्रा

  1. पहला छिड़कावः ड्रीप अथवा डॅचिंग द्वारा इस्तेमाल करें। केले लगाने के दिन से 50 दिन बाद, 200 ग्राम नेचरडीप प्रति 1000 केले।
  2. दूसरा छिडकावः ड्रीप अथवा ड्रेचिंग द्वारा इस्तेमाल करें। 150 से 180 दिन बाद, 200 ग्राम नेचर डीप प्रति 1000 केले।

नेचर डीप ट्रीटेड केले के खेत

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