नेचरडीप के बारे में जानिए


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मायकोरायझा ही एक उपयुक्त बुरशी आहे . मायकोरायझा पिकाच्या मुळांवर व मुळांमध्ये वाढते . ती झाडांच्या विस्तारीत पांढ-या मुळांसारखे काम करते . त्यामुळे द्राक्ष व फळपिकांस अधिक क्षेत्रातून पाणी व अन्नद्रव्ये उपलब्ध होतात . स्फुरद , पालाश , नत्र , कॅल्शियम , सोडियम , जस्त व तांबे यांसारखी अन्नद्रव्ये जमिनीतून शोषून घेण्यास मायकोरायझा पिकांना मदत करतात . फळझाडे व भाजीपाला पिकांना मायकोरायझा उपयुक्त आहे . मायकोरायझा जैविक खतांच्या वापराने उत्पादनात २२ ते २५ टक्के वाढ आढळून आली आहे.

यासाठी सुमिटोमो केमिकल इंडिया लिमिटेड कंपनीचे अमेरीकन मायकोरायझा नेचर डीप200 ग्रॅम प्रति एकर साठी याप्रमाणे ड्रिपने किवा आळवनी योग्य प्रकारे द्यावे.

नेचरडीप के बारे में किसानों के अनुभव


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Mr. Digambar E. GadeNASIK-2Maharashtra9552723419
Mr. Mahipal Jaswant TawarNasikMaharashtra9657369370
Mr. Ganesh KatkarSANGLIMaharashtra9922077554
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नेचरडीप के साथ अंगूर की खेती से मिलेगी ज्यादा उपज, जानिए कैसे ?


किसान अपने खेत में बोई फसलों की अच्छी पैदावार के लिए कई प्रयास करता है, ताकि वह फसल की उपज से बेहतर मुनाफ़ा कमा सके. इसी कड़ी में किसान सब्जी और फूल की खेती के साथ अंगूर की खेती भी कर सकते हैं. अंगूर की मिठास किसानों को अच्छा मुनाफ़ा देकर उनकी आमदनी को दोगुना कर सकती है. अगर इसकी खेती 1 एकड़ में की जाए, तो साल में इसकी पैदावार से लाखों रुपये कमाए जा सकते हैं. जानकारों का भी मानना है कि एक एकड़ में अंगूर की खेती से हर साल लगभग 6 से 7 लाख रुपये का मुनाफ़ा हो सकता है. अगर इस मुनाफ़े से खेती पर होने वाले खर्च को भी निकाल दें, तब भी किसानों को काफी बेहतर मुनाफ़ा मिलेगा.

अंगूर की खेती को चाहिए अनुकूल मौसम

इस खेती की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए मौसम का अनुकूल होना बहुत जरूरी है. बता दें कि महाराष्ट्र के नासिक में अंगूर की खेती बड़े पैमाने पर होती है. अगर किसान चाहें, तो हरे अंगूर के साथ-साथ काले रंग अंगूर की खेती भी कर सकते हैं. इसकी कुछ किस्मों की क्वालिटी इतनी अच्छी होती है कि अंगूर में मिठास ही मिठास भर देती है. इसके चलते देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अच्छी मांग बनी रहती है. दुनियाभर में लगभग 10 अंगूर उत्पादक देश हैं, जिनमें भारत का नाम भी शामिल है. राष्ट्रीय उद्यान विभाग के मुताबिक, इसकी खेती गर्म और शुष्क जलवायु में की जाती है. बता दें कि अगर किसान फसल की ड्रिप सिंचाई करें, तो पानी की बचत भी की जा सकती है. इसकी खेती के लिए तापमान 25 से 32 डिग्री का होना चाहिए.

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